Sheikh Hasina Exclusive Interview: Exile, Bangladesh’s Political Turmoil, and Her Vision for Democratic Restoration
शेख हसीना का विशेष साक्षात्कार: बांग्लादेश की राजनीतिक उथल-पुथल, निर्वासन और भविष्य की आकांक्षाएँ
प्रस्तावना
बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने द इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए हालिया विशेष साक्षात्कार में अपने निर्वासन, राजनीतिक संकट, भ्रष्टाचार के आरोपों, और भविष्य की आकांक्षाओं पर बेबाकी से विचार रखे।
अगस्त 2024 में छात्र आंदोलनों की हिंसक लहर के बाद सत्ता से बेदखल होकर भारत में शरण लेने वाली हसीना ने इस साक्षात्कार में स्वयं को न केवल एक “निर्वासित नेता” के रूप में प्रस्तुत किया, बल्कि बांग्लादेश के लोकतांत्रिक भविष्य की एक प्रतीक के रूप में भी चित्रित किया।
उनकी बातचीत इस बात का प्रमाण है कि दक्षिण एशिया में लोकतंत्र की जड़ें अब भी राजनीतिक प्रतिशोध, संस्थागत अस्थिरता और जन-आंदोलनों की तीव्रता के बीच असुरक्षित हैं। यह साक्षात्कार केवल एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि एक युगीन आत्मस्वीकृति है — एक ऐसे नेता की जो स्वयं को इतिहास के कठघरे में खड़ा देख रही हैं।
न्यायिक जांच समिति का विघटन: हसीना की सबसे बड़ी पीड़ा
साक्षात्कार का सबसे अहम बिंदु था — न्यायिक जांच समिति के विघटन पर हसीना की पीड़ा। हसीना ने कहा:
“मेरा एकमात्र अफसोस यह है कि हिंसा की उत्पत्ति की जांच के लिए हमने जो न्यायिक जांच समिति गठित की थी, उसे यूनुस ने भंग कर दिया, जिन्होंने बाद में इन गुंडों को क्षमादान दिया और उन्हें 'जुलाई योद्धा' के रूप में महिमामंडित किया।”
इस कथन में बांग्लादेश के लोकतंत्र की त्रासदी निहित है — जहां संस्थाएँ व्यक्ति-केन्द्रित सत्ता संघर्षों की बंधक बन गई हैं।
इस मुद्दे के तीन प्रमुख निहितार्थ हैं:
- न्यायिक स्वायत्तता का ह्रास — जांच समिति का विघटन यह दिखाता है कि शासन परिवर्तन के बाद न्यायिक संस्थाएँ स्वतंत्र नहीं रहीं।
- राजनीतिक हिंसा का वैधीकरण — ‘जुलाई योद्धा’ का नैरेटिव हिंसक आंदोलनों को नैतिक वैधता प्रदान करता है, जिससे राजनीतिक ध्रुवीकरण और गहराता है।
- संवैधानिक जवाबदेही का संकट — अंतरिम सरकार द्वारा क्षमादान जैसी कार्रवाइयाँ लोकतांत्रिक न्याय सिद्धांतों के विरुद्ध हैं और दीर्घकालिक संस्थागत क्षरण का संकेत देती हैं।
निर्वासन: राजनीतिक शून्यता नहीं, संघर्ष का विस्तार
शेख हसीना ने दिल्ली में अपने निर्वासन के जीवन को “अस्थायी” बताते हुए कहा कि यह राजनीतिक निर्वासन नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संघर्ष की निरंतरता है।
उनके शब्दों में:
“मैंने बांग्लादेश छोड़ा है, लेकिन बांग्लादेश ने मुझे नहीं छोड़ा।”
भारत में रहकर भी हसीना का ध्यान पूरी तरह बांग्लादेश की राजनीति पर केंद्रित है। वे भारत सरकार की शरण के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती हैं, किंतु बार-बार यह संकेत देती हैं कि उनका लक्ष्य वापसी और लोकतंत्र की पुनर्स्थापना है।
यह द्वंद्व — कृतज्ञता बनाम वापसी की लालसा — निर्वासन की गहराई को प्रकट करता है।
हसीना का यह कथन यह भी दर्शाता है कि वे अपनी वैधता और राष्ट्रीय पहचान दोनों को बरकरार रखना चाहती हैं, चाहे भौगोलिक रूप से वे सीमाओं के बाहर क्यों न हों।
भ्रष्टाचार के आरोप: राजनीतिक प्रतिशोध की परंपरा
हसीना पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को उन्होंने सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यह अंतरिम सरकार द्वारा रचा गया राजनीतिक षड्यंत्र है।
उनका दावा है कि:
- आरोपों का कोई ठोस प्रमाण नहीं दिया गया है।
- अंतरिम शासन अपने अस्तित्व को सही ठहराने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री को बलि का बकरा बना रहा है।
- वे इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों में चुनौती देने की तैयारी कर रही हैं।
बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास में यह कोई नई बात नहीं है। हर सत्ता परिवर्तन के बाद विपक्षी नेताओं पर भ्रष्टाचार, देशद्रोह या दुरुपयोग के आरोप लगाना एक स्थापित परंपरा बन चुकी है।
इस संदर्भ में हसीना का तर्क यह संकेत देता है कि सत्ता और नैतिकता के बीच की रेखा बांग्लादेशी राजनीति में लगातार धुंधली होती जा रही है।
लोकतंत्र और जनता के प्रति संदेश
साक्षात्कार के समापन में हसीना ने अपने देशवासियों से शांति, एकता और लोकतांत्रिक पुनर्जागरण का आह्वान किया। उनके शब्दों में:
“बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की संतान है। हिंसा और अराजकता हमें पराजित नहीं कर सकती। मैं लौटूँगी, और लोकतंत्र की रक्षा करूँगी।”
यह संदेश केवल एक भावनात्मक अपील नहीं, बल्कि एक राजनीतिक घोषणा-पत्र है — जिसमें निर्वासन में भी नेतृत्व का आत्मविश्वास झलकता है।
हसीना ने यह भी कहा कि वे “कभी भी हिंसा के बल पर सत्ता नहीं चाहतीं”, बल्कि जनता की इच्छा से वापस आना चाहती हैं।
क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय संदर्भ
शेख हसीना का निर्वासन दक्षिण एशिया की राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण संकेत देता है।
भारत के लिए वे एक विश्वसनीय साझेदार रही हैं — आतंकवाद विरोधी सहयोग, सीमा प्रबंधन और आर्थिक संपर्कों के क्षेत्र में उनकी नीतियों ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती दी थी।
उनकी अनुपस्थिति में बांग्लादेश की आंतरिक अस्थिरता क्षेत्रीय सुरक्षा संतुलन को प्रभावित कर सकती है, विशेषतः जब चीन और तुर्की जैसे देश नए राजनीतिक समीकरणों की तलाश में हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह साक्षात्कार यह संदेश देता है कि लोकतांत्रिक वैधता केवल सत्ता परिवर्तन से नहीं, बल्कि संस्थागत निरंतरता से मापी जानी चाहिए।
निष्कर्ष
शेख हसीना का यह साक्षात्कार केवल एक निर्वासित नेता की व्यक्तिगत कहानी नहीं है — यह बांग्लादेश के लोकतांत्रिक ढाँचे के संकट, संस्थागत पतन और राजनीतिक प्रतिशोध की संस्कृति का गहन दस्तावेज है।
उनके शब्दों में एक राष्ट्र की बेचैनी, एक नेता की दृढ़ता और एक लोकतंत्र की अस्थिरता एक साथ गूंजती है।
भविष्य में हसीना की वापसी हो या न हो, उनका यह साक्षात्कार बांग्लादेश की राजनीति में एक संदर्भ बिंदु रहेगा — यह बताने के लिए कि सत्ता से हटाए जाने के बाद भी कोई नेता विचारधारा और जनता के विश्वास से निर्वासित नहीं होता।
संदर्भ:
शेख हसीना। (13/11/2025). विशेष साक्षात्कार. द इंडियन एक्सप्रेस।
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